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भरि लोचन बोली प्रिया
भरि लोचन बोली प्रिया, कुंज ओट रिसठानि।पाए जानि तुम्हें अबै, करत प्रीति की हानि॥
कृपाराम
मृदु हँसि, पुनि-पुनि बोलि प्रिय
मृदु हँसि, पुनि-पुनि बोलि प्रिय, कै रूखी रुख बाम।नेह उपै, पालै, हरै, लै बिधि-हरि-हर-काम॥
दुलारेलाल भार्गव
हरषि न बोली, लखि ललनु
हरषि न बोली, लखि ललनु, निरखि अमिलु संग साथु।आँखिनु ही मैं हँसि, धर्यौ सीस हियँ धरि हाथु॥
बिहारी
मुख तैं बोले मिष्ट जो
मुख तैं बोले मिष्ट जो, उर में राखै घात।मीत नहीं वह दुष्ट है, तुरंत त्यागिये भ्रात॥
बुधजन
का ब्राह्मन का डोम भर
का ब्राह्मन का डोम भर, का जैनी क्रिस्तान।सत्य बात पर जो रहै, सोई जगत महान॥
सुधाकर द्विवेदी
अमर बेलि बिनु मूल की
अमर बेलि बिनु मूल की, प्रतिपालत है ताहि।रहिमन ऐसे प्रभुहिं तजि, खोजत फिरिए काहि॥
रहीम
जो ख़ुदा पच्छिम बसै
जो ख़ुदा पच्छिम बसै तौ पूरब बसत है राम।रैदास सेवों जिह ठाकुर कूं, तिह का ठांव न नाम॥
रैदास
बारबधू हिय की उमग
बारबधू हिय की उमग, चली सु पति के पास।चित उदार, कहँ रसिकमनि, बोली बचन निरास॥
दौलत कवि
कबीर यहु घर प्रेम का
कबीर यहु घर प्रेम का, ख़ाला का घर नाँहि।सीस उतारै हाथि करि, सो पैठे घर माँहि॥